झारखंड के गुमला में जन्मीं सुप्रीति के पिता का नाम रामसेवक उरांव और माता का नाम बालमती था. रामसेवक परिवार चलाने के लिए वैद्य का काम करता था। वह मरीजों को देखने के लिए आसपास के गांवों में जाते थे। साल 2003 में दिसंबर की रात रामसेवक घर नहीं लौटा। बालमती समेत पांच बच्चे अपने माता-पिता के लौटने का इंतजार करते रहे, लेकिन अगली सुबह रामसेवक और कुछ ग्रामीणों के शव मिले। नक्सलियों ने उसे गोलियों से छलनी कर पेड़ से लटका दिया था। पिता की मृत्यु के समय सुप्रीति बहुत छोटी थी। माँ ने सभी बच्चों को पाला। बालमती देवी को घाघरा प्रखंड के बीडीओ कार्यालय में नौकरी मिल गई. बच्चों के साथ रहने के लिए सरकारी क्वार्टर में एक आश्रय भी मिला। यहीं से सुप्रीति ने संघर्ष की ‘दौड़’ शुरू की।
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दौड़ने में सुप्रीति का करियर
इंटर स्कूल प्रतियोगिता में सुप्रीति ने कोच प्रभात रंजन तिवारी से मुलाकात की। उन्होंने सुप्रीति को प्रशिक्षण देना शुरू किया और वर्ष 2015 में सुप्रीति झारखंड खेल प्रशिक्षण केंद्र में प्रशिक्षण शुरू किया। इस दौरान सुप्रीति ने कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया। उन्होंने 400 मीटर, 800 मीटर, 1500 मीटर और फिर 3000 मीटर की दौड़ में भी कई रिकॉर्ड बनाए।
संघर्ष का परिणाम राष्ट्रीय पदक के रूप में प्राप्त हुआ।
साल 2019 में सुप्रीति की मेहनत रंग लाई जब उन्होंने अपना पहला राष्ट्रीय पदक जीता। फिर नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज जीता। सुप्रीति ने साल 2021 में गुवाहाटी में हुई नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रिकॉर्ड समय में 3000 मीटर की दौड़ पूरी की। सुप्रीति को भरोसा है कि वह आगामी विश्व कप प्रतियोगिता में नए रिकॉर्ड बनाने जा रही हैं।
रिपोर्ट – उत्तम आनंद
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वेब शीर्षक: एथलीट सुप्रीति की कहानी जिसने 13 मेडल जीते और अब कोलंबिया की तैयारी कर रही हैं
नवभारत टाइम्स, टीआईएल नेटवर्क से हिंदी समाचार
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